एजेंसियां— पटना : इस बार छठ पूजा की शुरुआत 17 नवंबर से हुई। छठ के इस महापर्व की शुरुआत नहाय खाय से होती है और दूसरा दिन खरना, तीसरा दिन अघ्र्य और चौथा दिन पारण दिया जाता है। हिंदू पंचांग के अनुसार, कार्तिक शुक्ल षष्ठी के दिन व्रती महिलाएं छठ का व्रत रखती हैं। इस दिन महिलाएं शाम को किसी नदी या तालाब में खड़े होकर डूबते हुए सूर्य को अघ्र्य देती हैं। ये अघ्र्य पानी में दूध डालकर दिया जाता है। सूर्यास्त के समय व्रती महिला के साथ परिवार के अन्य सदस्य भी मौजूद रहते हैं। साथ ही इस दिन बांस से बनी टोकरी, जिसे लोक भाषा में सूप कहा जाता है, में फल, ठेकुआ, गन्ना, नारियल, फूल, चावल के लड्डू, मूली, कंदमूल आदि रखकर पूजा की जाती है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, सायंकाल में सूर्य अपनी पत्नी प्रत्यूषा के साथ रहते हैं। इसलिए छठ पूजा में शाम के समय सूर्य की अंतिम किरण प्रत्यूषा को अघ्र्य देकर उनकी उपासना की जाती है। ज्योतिषियों का कहना है कि ढलते सूर्य को अघ्र्य देकर कई मुसीबतों से छुटकारा पाया जा सकता है। इसके अलावा सेहत से जुड़ी भी कई समस्याएं दूर होती हैं। इस दिन सुबह से अघ्र्य की तैयारियां शुरू हो जाती हैं। पूजा के लिए लोग प्रसाद जैसे ठेकुआ, चावल के लड्डू बनाते हैं। छठ पूजा के लिए बांस की बनी एक टोकरी ली जाती है, जिसमें पूजा के प्रसाद, फल, फूल आदि अच्छे से सजाए जाते हैं। एक सूप में नारियल, पांच प्रकार के फल रखे जाते हैं। सूर्यास्त से थोड़ी देर पहले लोग पूरे परिवार के साथ नदी के किनारे छठ घाट जाते हैं।
पानी में खड़े होकर डूबते सूर्य को अर्घ्य, महिलाओं ने बांस की टोकरी में फल-ठेकुआ रखकर की पूजा-अर्चना