प्रशांत किशोर ऐसे शख्स हैं जिन्होंने चुनाव में कई बड़े नेताओं के साथ काम किया। खास बात यह है कि उनकी विचारधाराएं भी अलग-अलग थीं। उन्होंने कुछ दिन के लिए राजनीति भी जॉइन की। ऐसे में सवाल यह उठता है कि आखिर वह किस राजनीतिक विचारधारा से ताल्लुक रखते हैं। करन थापर ने एक इंटरव्यू के दौरान उनसे विचारधारा पर सवाल पूछ लिया। उन्होंने कहा कि हो सकता है आज आप शिवसेना के साथ काम करें और कल ममता बनर्जी के लिए करने लगें। आखिर आपकी विचारधारा क्या है?
इसपर प्रशांत किशोर ने कहा यहां तो राजनेता भी अपनी पार्टी बदलते रहते हैं। ऐसे में जनता को भी अधिकार है कि वह विचारधारा बदल सके। उन्होंने खादी की बात करते हुए कहा कि इसका इस्तेमाल विचारधारा के नाम से सबसे खराब तरीके से किया गया है। उन्होंने कहा, एक पार्टी के नेता के तौर पर एक शख्स के अपने कुछ मानक हो सकते हैं, जिनके आधार पर वह फैसला करता है।
गांधी जी का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा, महात्मा गांधी गोहत्या के खिलाफ थे और आज यही बात आरएसएस कहता है। महात्मा गांधी शाकाहारी भी थे। उन्होंने ग्राम स्वराज की बात की इसका मतलब वह समाजवादी थे। उन्होंने एसेट के स्टेट ओनरशिप की बात की इसका मतलब वह कम्युनिस्ट थे। इसके अलावा वह कांग्रेस में थे। अब आप बताइये कि अगर आज गांधी जी जिंदा होते तो कौन सी पार्टी में होते।
पीके ने कहा कि विचारधारा लोगों को एक सीमा में बांध देती है और वह विस्तृत रूप से सोच नहीं सकता है। उन्होंने कहा, किसी विचारधारा से जुड़े होने का मतलब नहीं है कि आप किसी पार्टी से जुड़े हैं। जब मैं किसी पार्टी के साथ काम करता हूं तो उनके हिसाब से काम करता हूं। जब नीतीश कुमार ने महागठबंधन के साथ चुनाव लड़ा तो मैं उनके साथ था लेकिन आज नहीं हूं।
उन्होंने कहा, नीतीश के साथ मैंने सात पॉइंट का अजेंडा क्रिएट किया था। आज मैं उनके साथ नहीं हूं लेकिन बजट में उन्हें इसपर काम करना पड़ा। करन थापर से उन्होंने कहा कि अगर आप एक पार्टी बता दें जिसमें महात्मा गांधी शामिल हो सकते हैं, तो मैं उसी पार्टी में ज़िंदगीभर रहने को तैयार हूं।