पिछले हफ्ते ही देश के दूसरे सबसे बड़े कानूनी अफसर के पद पर बैठे तुषार मेहता पर ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस ने गंभीर आरोप लगाए थे। टीएमसी का कहना था कि सॉलिसिटर जनरल मेहता नारदा केस में आरोपी सुवेंदु अधिकारी से मिले हैं, जबकि तुषार मेहता खुद इस केस में केंद्रीय एजेंसी के वकील हैं। ऐसे में टीएमसी नेताओं ने उन पर पक्षपाती रवैया रखने के आरोप लगाते हुए उन्हें हटाने की मांग की है। हालांकि, तुषार मेहता ने इन आरोपों से इनकार करते हुए कहा कि सुवेंदु अधिकारी उनसे मिलने आए जरूर थे, लेकिन वे घर पर मौजूद नहीं थे, इसलिए मुलाकात नहीं हो पाई।
अपने करियर के दौरान अब तक कई राजनीतिक मसलों पर सरकार का पक्ष रख चुके तुषार मेहता के लिए तृणमूल कांग्रेस के नेताओं की ओर से लगाए गए आरोप कोई नए नहीं हैं। उनके आलोचक अकसर इस बारे में बात करते हैं कि कैसे वे कोर्ट में विपक्ष के खिलाफ लड़ाई का बीड़ा उठाने के लिए तैयार दिखते हैं, जबकि उन्हें कानून के आधार पर अपनी दलीलें रखनी चाहिए।
हालांकि, मोदी सरकार के लिए 55 साल के मेहता अब तक बड़े-बड़े कोर्ट मामलों में संकटमोचक के तौर पर उभरे हैं। फिर चाहे सुप्रीम कोर्ट में और दिल्ली हाईकोर्ट में कोरोनावायरस मैनेजमेंट और ऑक्सीजन की कमी का मुद्दा हो या दिल्ली जिला अदालत में पूर्व गृह मंत्री पी चिदंबरम की जमानत का विरोध करना या फिर राजधानी दिल्ली में हुए सांप्रदायिक दंगों में एफआईआर दर्ज करने में हुई देरी में सरकार का बचाव करना। मेहता ने 7 साल पहले दिल्ली आने के बाद से लगातार सरकार का साथ देने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। हालांकि, ऐसे में ये जानना जरूरी है कि तुषार मेहता अब तक अपने लंबे करियर में सिर्फ भाजपा से ही नहीं जुड़े रहे हैं। उनके करियर की शुरुआत एक कांग्रेस नेता और वकील के अंडर में अप्रेंटिस के तौर पर हुई थी।
कांग्रेस नेता के साथ शुरू हुआ करियर, 2000 में अमित शाह से संपर्क में आए: गुजरात के जामनगर में जन्में तुषार मेहता 12 साल की उम्र में ही पिता के निधन के बाद अहमदाबाद आ गए। उन्होंने 1987 में अहमदाबाद के ही एलए शाह लॉ कॉलेज से पढ़ाई पूरी करने के बाद एडवोकेट के तौर पर अपना करियर शुरू किया। मौजूदा समय में उनकी पहचान नरेंद्र मोदी और अमित शाह जैसे क्लाइंट्स के वकील के तौर पर है, लेकिन इस करियर में उनकी शुरुआत एक कांग्रेस नेता के साथ हुी थी। यह थे गुजरात हाईकोर्ट के वरिष्ट एडवोकेट कृष्ण कांत वखारिया, जो कि कोऑपरेटिव सोसाइटीज से जुड़े कानूनों में एक्सपर्ट रहे थे। 1988 में मेहता ने उनके साथ अप्रेंटिस के तौर पर काम शुरू किया।
वखारिया के मुताबिक, “मेहता हाईकोर्ट में प्रैक्टिस करना चाहते थे, इसलिए उनकी समझ और मेहनत को देखते हुए मैंने उन्हें पहला मौका दिया।” साल 2000 में तुषार मेहता को अहमदाबाद जिला कोऑपरेटिव बैंक के लिए काम करने का मौका मिला, तब अमित शाह इस सोसाइटी के अध्यक्ष थे। वखारिया का कहना है कि इसके बाद ही मेहता और शाह अच्छे दोस्त बन गए, क्योंकि वे साथ में घंटों तक याचिकाओं पर चर्चा करते थे। बता दें कि मेहता ने अमित शाह का गुजरात क्रिकेट एसोसिएशन के चुनाव से जुड़ा केस भी लड़ा था।
तुषार मेहता 2004 तक वखारिया के साथ जुड़े रहे और इसके बाद उन्होंने अपनी प्रैक्टिस शुरू कर दी। मेहता का उभार 2008 में शुरू हुआ, जब गुजरात में गृह और कानून मंत्रालय में राज्यमंत्री की भूमिका निभा रहे अमित शाह ने उन्हें एडिशनल एडवोकेट जनरल नियुक्त किया। बताया जाता है कि इस पद पर रहने के दौरान उन्होंने सरकार के लिए दीवानी से जुड़ी याचिकाओं को संभाला। इसके बाद 2010 में मेहता ने सोहराबुद्दीन शेख एनकाउंटर केस में स्टेट ऑफ गुजरात की तरफ से केस लड़ा। इस मामले में अमित शाह भी आरोपी बनाए गए थे। 2014 में मुंबई की एक कोर्ट ने शाह को इस केस से बरी कर दिया था।
2014 में नरेंद्र मोदी जब प्रधानमंत्री के तौर पर दिल्ली पहुंचे, तो मेहता को अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी की छह एडिशनल सॉलिसिटर जनरल की टीम में जगह मिली। हालांकि, उस वक्त ज्यादातर दिल्ली आधारित वकीलों की टीम में गुजरात से आए रोहतगी को बाहरी के तौर पर देखा जाता है। मेहता ने एक मौके पर यहां तक कहा था कि दिल्ली में उनकी नियुक्ति चौंकाने वाली थी। उन्होंने कुछ समय पहले ही अहमदाबाद में अपने ऑफिस को रेनोवेट कराया था और अचानक एक दिन पीएम ने उन्हें फोन कर बुला लिया।
2017 में जब मुकुल रोहतगी ने अटॉर्नी जनरल का पद छोड़ा, तो सरकार की इस लीगल टीम से कई और वकीलों के भी इस्तीफे का दौर शुरू हो गया। हालांकि, इस हर एक इस्तीफे के साथ मेहता लगातार मजबूत होते गए और उन्हें राजनीति से जुड़े बड़े केस में पेश होने के मौके मिलने लगे। फिर चाहे वह जज बीएच लोया की मौत से जुड़ा केस हो या रोहिंग्याओं को वापस भेजने का केस और धारा 35ए की वैधता को चुनौती देने का मामला। अक्टूबर 2017 में तत्कालीन सॉलिसिटर जनरल रंजीत कुमार ने निजी कारणों का हवाला देकर पद से इस्तीफा दे दिया। यह पद एक साल तक खाली रहा और बाद में 10 अक्टूबर 2018 को इस पद पर तुषार मेहता की नियुक्ति हुई।