अखंड समाचार, गुजरात (ब्यूरो) :
1991 में अमित ठाकर और कल्पेश पटेल एक साथ स्नातक में पढ़ते थे, अमित उस समय एबीवीपी से जुड़े थे और कल्पेश कांग्रेस की छात्र इकाई एनएसयूआई से जुड़कर छात्र राजनीति में सक्रिय थे, तब भी दोनों के बीच सियासी मुकाबला हुआ था. पढ़िए अखंड समाचार की ये रिपोर्ट. जब भी वक्त अपने आप को दोहराता है तो उसकी खूब चर्चा की जाती है और जब मामला दो करीबी दोस्तों के बीच की दुश्मनी का होता है तो उसे और भी गौर से परखा जाता है. अहमदाबाद की वेजलपुर विधानसभा सीट से बीजेपी ने अमित ठाकर को मैदान में उतारा है तो इसी सीट से आम आदमी पार्टी ने कल्पेश पटेल को उम्मीदवार बनाया है. वैसे तो अमित और कल्पेश काफी अच्छे दोस्त रहे हैं मगर दोनों के बीच हो रही यह चुनावी टक्कर कोई नई नहीं बल्कि 31 साल पुरानी है.
छात्र राजनीति में जीते थे कल्पेश
1991 में अमित ठाकर और कल्पेश पटेल अहमदाबाद के सहजानंद कॉलेज में स्नातक की पढ़ाई साथ-साथ कर रहे थे, अमित उस समय एबीवीपी से जुड़े थे और कल्पेश कांग्रेस की छात्र इकाई एनएसयूआई से जुड़कर छात्र राजनीति में सक्रिय थे. 1991 में हुए उस छात्र राजनीति के चुनाव में कल्पेश पटेल ने 1500 में से 1300 वोट हासिल कर अमित ठाकर को जबरदस्त पटखनी दी थी. अब 31 साल बाद अहमदाबाद की वेजलपुर विधानसभा सीट पर दोनों एक बार फिर आमने-सामने हैं. ऐसे में सवाल उठना लाजिमी है कि क्या 31 साल पहले का इतिहास फिर दोहराया जाएगा या फिर दोनों दोस्तों की चुनावी दुश्मनी का हिसाब चुकता हो जाएगा.
वेजलपुर में इस बार कड़ी टक्कर
अहमदाबाद की वेजलपुर सीट पर पिछले कुछ चुनाव से बीजेपी का कब्जा रहा मगर इस बार दोनों दोस्तों के बीच कड़ी चुनावी टक्कर देखने को मिल रही है. अगर वेजलपुर सीट पर वोटरों की गणित की बात करें तो यहां कुल 3.87 लाख मतदाता हैं जिनमे 1.98 पुरुष और 1.88 लाख महिला वोटर हैं. इनमें से 1.23 लाख मुस्लिम, 86000 ओबीसी, 70000 सवर्ण, 30000 पटेल, 23000 दलित और 44000 अन्य जातियां हैं. वोटरों के इस गणित के मुताबिक दोनों नेताओं के जाति समीकरण किसी एक के पक्ष में नहीं हैं. बड़ा सवाल यह है कि सवा लाख मुस्लिम मतदाताओं ने किसी एक नेता के पक्ष में वोट किया तो उसका पलड़ा जरूर भारी हो सकता है. मगर यह बात भी उतनी ही सच है कि 2002 के दर्दनाक दंगों के बावजूद मुस्लिम मतदाताओं का एक बड़ा तबका बीजेपी को वोट करता है और यही वजह है की दोनों दोस्तों के बीच की इस सियासी दुश्मनी की चर्चा 8 दिसंबर तक लगातार चलते रहने की उम्मीद है