हिमाचल प्रदेश में लोकसभा की एक और विधानसभा की तीन सीटों पर प्रस्तावित उपचुनाव के टलने से सियासी दलों ने राहत की सांस ली है। कोविड और सियासी हालात के बीच भाजपा और कांग्रेस दोनों ही उपचुनावों में अपनी जीत के दावे तो कर रहे थे लेकिन परिणाम को लेकर दोनों ही दल असमंजस में थे। प्रदेश की कुल 20 विधानसभा सीटों पर इस उपचुनाव का असर पड़ना था, ऐसे में दोनों ही दलों के नेताओं की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई थी। चुनाव न होने से दलों के दिग्गज नेता जहां खुश हैं, वहीं चुनावी मैदान में ताल ठोकने के लिए जीजान से जुटे संभावित प्रत्याशी मायूस हो गए हैं। ऐेसा इसलिए है कि एक ओर जहां भाजपा के संभावित प्रत्याशियों को उम्मीद थी कि सत्ता दल होने के चलते उनकी जीत आसानी से हो सकती है।
इधर, कांग्रेसी प्रत्याशियों को भी लग रहा था कि वे जीत सकते हैं। विधायक बनने के मंसूबों पर पानी फिरने से अब उनकी चुनावी लड़ाई भी और लंबी हो गई है। सूत्रों के अनुसार मौसम और एक साल से कम समय होने पर उपचुनाव न होने का नियम आड़े आया तो उनकी मेहनत पर पूरी तरह से भी पानी फिर सकता है। वहीं, पार्टियों के नेताओं को भी इन उपचुनाव की वजह से बढ़ रही गुटबाजी पर लगाम लगने की उम्मीद है। उम्मीद जताई जा रही है कि चुनाव लड़ने की हसरत पर ब्रेक तो लगेगा ही, दोनों दलों के लिए अपनों को समझाने और संतुष्ट करने के लिए भी पर्याप्त समय मिल जाएगा।